नमस्कार दोस्तों! आज की पोस्ट में हम कैप्टन विक्रम बत्रा पर निबंध लिखना सीखेंगे। कैप्टन विक्रम बत्रा को भला कौन नहीं जानता? भारत के शेरशाह कहे जाने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा भारतीय थल सेवा की एक अधिकारी थे, जिन्होंने कारगिल के युद्ध के दौरान अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए वीरगति प्राप्त की थी। आज हम उन्हीं के विषय में इस निबंध के माध्यम से जानेंगे। Captain Vikram Batra par nibandh के माध्यम से आज हम वीरता से भरे उनके जीवन के बारे में जानेंगे।
“Captain Vikram Batra essay in hindi”
“दुश्मनों पर गेरी तूने जो गाज है,
वीरता पर तेरी हमको नाज है।
शेरों का शेर था, शेरशाह फौलादी,
अमर रहेगा बलिदान तेरा जिसने,
करोड़ों दिलों में जगह दिला दी।”
परिचय –
शेरशाह के नाम से प्रसिद्ध कैप्टन विक्रम बत्रा भारतीय सेना के एक अधिकारी थे। कारगिल के युद्ध में अपनी वीरता का अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए वह शहीद हो गए थे। मरणोपरांत उन्हें देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान “परमवीर चक्र” से भी सम्मानित किया गया था।
कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म –
उनका जन्म 9 सितंबर 1974 को पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम गिरधारी लाल बत्रा तथा मां का नाम कमलकांता बत्रा था।
कैप्टन विक्रम बत्रा की शिक्षा और सेना में उनकी नियुक्ति-
कैप्टन विक्रम बत्रा की मां एक शिक्षक थी इसीलिए उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपनी मां से ही प्राप्त की थी। फिर उनका दाखिला डी ए वी स्कूल में कराया गया। डी ए वी स्कूल में पढ़ने के बाद उन्होंने सेंट्रल स्कूल पालमपुर में एडमिशन लिया। स्नातक की पढ़ाई उन्होंने डी ए वी कॉलेज, चंडीगढ़ से शुरू कर दी थी। लेकिन उन्हें तो बचपन से ही सेना में भर्ती होने का बड़ा ही शौंक था। सन 1996 में उन्होंने सीडीएस की परीक्षा पास की थी।
विक्रम बत्रा भारतीय थलसेना में एक अधिकारी के पद पर कार्यरत थे। 6 दिसंबर 1997 को एक लेफ्टिनेंट के तौर पर उन्हें नियुक्ति मिली। उन्होंने कारगिल के युद्ध में बड़ी ही बहादुरी के साथ दुश्मन का सामना किया था और कारगिल युद्ध में बेहतर प्रदर्शन करने के कारण उन्हें कप्तान के पद पर पदोन्नत भी किया गया था।
कारगिल में विक्रम बत्रा की बहादुरी –
कारगिल युद्ध के दौरान श्रीनगर लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्वपूर्ण चोटी, जिसे 5140 के नाम से जाना जाता था, उसे पाकिस्तान से मुक्त करवाने की जिम्मेदारी कैप्टन विक्रम बत्रा की टुकड़ी को मिली थी। बड़ी ही निडरता के साथ विक्रम बत्रा ने वहां पहुंचकर दुश्मन पर धावा बोल दिया था। दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद भी कैप्टन विक्रम बत्रा ने उस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया था। रेडियो के जरिए उन्होंने “दिल मांगे मोर” का विजय उद्घोष भी किया। कारगिल युद्ध में ही दिए गए कोड नाम “शेरशाह” के नाम से वे प्रसिद्ध हो गए। वे आगे भी बड़ी ही बहादुरी के साथ दुश्मनों का सफाया करने में लगे रहे। लेकिन दुर्भाग्यवश आगे की कार्यवाही के दौरान उन्होंने अपनी जान गवा दी।
उपसंहार –
कैप्टन विक्रम बत्रा ने असाधारण नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए अपनी सैन्य टुकड़ी के साथ दुश्मनों की ईंट से ईंट बजाई थी। वे बेशक इस दुनिया में नहीं है, किंतु हर भारतवासी के दिलों में वह हमेशा हमेशा के लिए अमर रहेंगे। सन 2021 में उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म “शेरशाह” भी रिलीज हुई है। 15 अगस्त 1999 में उन्हें परमवीर चक्र से भी सम्मानित किया गया।
“शेरशाह वह भारत का, वास्तव में शेर ही था,
चुटकियों में दुश्मन को करता वह ढेर था।
कुर्बानी ने उसकी भारत का दिल दहलाया था, फिर ना मुड़के वह वापस लौट कर कभी आया था।
दिलों में लेकिन उसको देशवासियों ने बसाया था,
याद रहेगा वो दिलों में, जो जिंदा दिल कहलाया था।”