गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन परिचय । Guru Govind Singh ji ka jeevan parichay

नमस्कार दोस्तों! आज की पोस्ट में हम सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन परिचय लिखना सीखेंगे। इस जीवन परिचय में हम गुरु साहिब के बचपन से लेकर उनके जीवन भर की तमाम घटनाओं का विवरण करेंगे। श्री गुरु गोविंद सिंह जी एक महान योद्धा और आध्यात्मिक व्यक्ति थे। उन्होंने धर्म बढ़ाने की खातिर अपने पूरे परिवार का बलिदान दे दिया था। गुरु गोविंद सिंह जी के त्याग और बलिदान के कारण उनका स्थान अत्यंत सम्माननीय माना जाता है।

“श्री गुरू गोविंद सिंह जी”

जीवन परिचय –
गुरु गोविंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें और आखिरी गुरु थे। नौवें गुरु श्री तेग बहादुर जी के बलिदान के उपरांत ही सन 1675 में श्री गुरु गोविंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु बने थे। गुरु गोविंद सिंह जी एक महान व्यक्तित्व के स्वामी थे। वे एक महान योद्धा थे। उन्होंने सन 1699 में बैसाखी के पावन दिवस पर खालसा पंथ की स्थापना की थी, जो सिख इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।

श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म –
गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 में पटना में हुआ था। उन्होंने सिख धर्म के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी के घर जन्म लिया था। जिस समय उनका जन्म हुआ उनके पिता गुरु तेग बहादुर जी असम में धर्म उपदेश करने हेतु गए हुए थे। जन्म के समय का उनका घर वर्तमान में तख्त श्री हरिमंदर जी पटना साहिब के नाम से विख्यात है।

गुरु गोविंद सिंह जी का शुरुआती जीवन –
गुरु साहिब के जन्म के चार वर्षो के पश्चात ही सन 1670 में उनका परिवार पंजाब आ गया। इसके बाद सन 1672 के मार्च महीने में गुरु साहिब का परिवार हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी नाम के एक स्थान पर आकर रहने लगा जिसे हम आज आनंदपुर साहिब के नाम से जानते हैं। इसी स्थान पर गुरु साहिब की शिक्षा दीक्षा आरंभ हुई। गुरु गोविंद सिंह जी ने फारसी और संस्कृत भाषा में शिक्षा ली और एक कुशल योद्धा बनने हेतु सैनिक कौशल भी सीखा। गुरु गोविंद सिंह जी बचपन से ही शांति, क्षमा और सहनशीलता के आदर्शों को मानने वाले थे।

औरंगजेब के शासन में जब कश्मीरी पंडित जबरन धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाए जाने के विरोध में एक फरियाद लेकर गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में आए और पूछा क्या कोई ऐसा महापुरुष है जो धर्म की खातिर अपना बलिदान दे सके? तो उस समय गुरु गोविंद सिंह जी जो मात्र 9 वर्ष के थे, उन्होंने अपने पिता से कहा कि आप से बड़ा महापुरुष भला और कौन हो सकता है..! तब गुरु तेग बहादुर जी ने इस्लाम ना स्वीकार करके दिल्ली के चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से अपने शीश का बलिदान दे दिया। इसके बाद सन 1676 में गुरु गोविंद सिंह जी को सिखों के दसवें गुरु घोषित कर दिया गया।

दसवीं गुरु की उपाधि मिलने के पश्चात भी गुरु साहिब की शिक्षा चलती रही। शिक्षा के दौरान उन्होंने पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ घुड़सवारी और सैनिक कौशल भी सीखा। सन 1684 में उन्होंने चंडी दी वार की रचना की। एक वर्ष तक वह यमुना के तट पर स्थित पोंटा नामक स्थान पर ही रहे।

गुरु गोविंद सिंह जी का विवाह –
गुरु गोविंद सिंह जी के तीन विवाह हुए थे। प्रथम विवाह सन 1677 में 10 वर्ष की आयु में माता जीतो के साथ हुआ था, जिनसे उनके तीन पुत्र हुए थे। उन तीन पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह। दूसरा विवाह सन 1684 में 17 वर्ष की आयु में सुंदरी माता के साथ आनंदपुर में हुआ था, जिनसे उनका एक पुत्र अजीत सिंह हुआ था। तीसरा विवाह सन 1700 में 33 वर्ष की आयु में माता साहिब देवन से हुआ था, जिनसे उनके कोई संतान नहीं थी।

खालसा पंथ की स्थापना –
गुरु गोविंद सिंह जी के समय में सिख समुदाय का एक नवीन इतिहास रचित हुआ। गुरु साहिब ने सन 1699 में बैसाखी के शुभ दिन खालसा पंथ की स्थापना की, जिसके अंतर्गत सिख धर्म के अनुयायियों के एक समूह को विधिवत दीक्षा प्रदान की गई। सभा के दौरान उन्होंने एक ही सवाल पूछा कि कौन अपने सर का बलिदान करना चाहता है? तब एक-एक करके पांच सेवक गुरु साहिब के साथ खड़े हो गए, जिन्हें पंज प्यारे कहा जाता है।

27 दिसंबर 1704 को गुरु साहिब के दोनों छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को औरंगजेब द्वारा दीवारों में चुनवा दिया गया। तब गुरु साहिब ने औरंगजेब को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें खालसा पंथ द्वारा मुगल साम्राज्य के विनाश की चेतावनी दी गई।

सन 1705 में मुक्तसर नामक एक जगह पर गुरु गोविंद सिंह जी और मुगलों के बीच भयानक युद्ध हुआ, जिसमें गुरु गोविंद सिंह जी और खालसा पंथ की विजय हुई। इस प्रकार गुरु साहिब ने अत्याचारों के विरुद्ध ऐसी लड़ाई लड़ी जिसमें उन्होंने अपना सब कुछ लुटा दिया। उन्होंने धर्म बचाने हेतु अपने पुत्रों तक का बलिदान दे दिया।

गुरु साहिब की मृत्यु –
औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुर शाह गद्दी पर बैठा। बहादुर शाह के साथ गुरु साहिब के संबंध अच्छे थे, जो सरहद के नवाब वजीत खान को पसंद नहीं आया। अतः उसने गुरु जी के पीछे अपने दो पठान लगा दिए जिन्होंने धोखे से गुरुजी पर वार किया और गुरुजी सन 1708 में दिव्य ज्योति में समा गए। गुरु साहिब ने गुरु ग्रंथ साहिब को ही अपना गुरु मानने के लिए कहा था। अतः तब से गुरु ग्रंथ साहिब सिख समुदाय के गुरु माने जाते हैं।

गुरु गोविंद सिंह जी की रचनाएं –
गुरु गोविंद सिंह जी जितने महान योद्धा थे उतने ही महान कवि भी थे। वे अध्यात्म और चिंतन पर विश्वास रखते थे। उन्होंने अपने जीवन काल में अनेक रचनाएं की। जाप साहिब, बचित्तर नाटक, चंडी चरित्र, चंडी दी वार, जफरनामा, अथ पख्याँ चरित्र लिख्यते, खालसा महिमा इत्यादि।

तो इस प्रकार से आप दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन परिचय को आसानी के साथ तैयार कर सकते हैं। अगर यह पोस्ट आपके लिए हेल्पफुल होता है तो आप हमारी वेबसाइट को सब्सक्राइब अवश्य करें। यदि पोस्ट से संबंधित आपका कोई सुझाव है तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं। धन्यवाद!

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