नमस्कार दोस्तों ! आज की इस पोस्ट में हम सभी डॉ. भीमराव अंबेडकर जी की जयंती के अवसर पर भाषण देना सीखेंगे। इस भाषण को हम नारों के साथ प्रभावशाली तरीके से कैसे देना है यह सीखेंगे।
डॉ भीमराव अंबेडकर एक युग निर्माता थे। वे एक शिक्षाविद, विधिवेत्ता और समाज सुधारक थे। वे दलित समाज से थे और उन्होंने बचपन से ही दलितों के प्रति हो रहे भेदभाव का सामना किया था। उन्होंने देश में दलित और पिछड़े वर्ग की स्थिति को सुधारने हेतु अनेक प्रयास किए।
“अंबेडकर जयंती पर भाषण”
आदरणीय प्रधानाचार्य जी, सभी शिक्षक गण और मेरे दोस्तों… सर्वप्रथम आप सभी को अंबेडकर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं! मैं आज आप सभी के समक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर जी के बारे में कुछ शब्द व्यक्त करना चाहती हूं।
“रचकर देश का संविधान
देश को दिलाई एक अलग पहचान
भारत देश के भाग्य विधाता
बाबा साहेब तुम्हें प्रणाम!”
दलित और पिछड़े वर्गों के मसीहा कहे जाने वाले डॉ भीमराव अंबेडकर स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री थे। उन्होंने जीवन पर्यंत समाज में फैले भेदभाव और असमानता को मिटाने का हर संभव प्रयास किया।
भारतीय संविधान के जनक कहे जाने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल सन 1891 में मध्य प्रदेश के महू नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता श्री राम जी सकपाल और उनकी माता भीमाबाई थीं। डॉ अंबेडकर अपने समय में देश के उच्चतम शिक्षित नागरिक थे।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को देश बाबा साहब के नाम से जानता है। वे भारतीय संविधान के निर्माता हैं। आज हमारे देश का संविधान अगर हमें पूरे सम्मान के साथ देश में रहने का अधिकार देता है, तो इसका श्रेय बाबा साहेब को ही जाता है। बाबा साहेब के कारण ही आज देश में महिलाओं को भी पुरुषों के समान सभी संवैधानिक अधिकार दिए गए हैं।
बाबासाहेब का जीवन बड़ा ही संघर्षमय था। उन्होंने जीवन के पग पग पर दलित एवं पिछड़े वर्ग से होने के कारण बड़ा ही अपमान सहा। बचपन में ही उन्हें अपने विद्यालय में दलित वर्ग से होने के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा था। उन्हें ऊंची जाति के बच्चों से अलग बैठाया जाता था। बचपन से लेकर जीवन पर्यंत उन्हें ना चाहते हुए भी जातिगत भेदभाव रूपी अपमान को सहना ही पड़ा। इस अपमान ने उनके अंदर देश के दलित एवं पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए कुछ कर गुजरने की चिंगारी उत्पन्न की। वे जीवन पर्यंत पिछड़ी जाति के लोगों हेतु समान अधिकारों के लिए लड़ते रहे। यही कारण है कि उन्हें दलित और पिछड़ों का मसीहा कहा जाता है।
युग पुरुष कहीं जाने वाले डॉक्टर अंबेडकर ने अपने कर्मों द्वारा पूरी मानव जाति की सोच बदलकर रख डाली। पूरे विश्व के समक्ष उन्होंने दलित और पिछड़े वर्गों को समान अधिकार दिलाने का पक्ष रखा और काफी हद तक कामयाब भी रहे। बाबासाहेब ने जाति भेद के कारण ही हिंदू धर्म को त्याग कर जीवन के अंतिम वर्षों में बौद्ध धर्म को अपना लिया था। वे एक महान व्यक्तित्व और दृढ़ विचारधारा के स्वामी थे जिन्होंने संपूर्ण विश्व के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया। जिस समय देश अस्पृश्यता और छुआछूत की धारणाओं में जकड़ा हुआ था, उन्होंने उस समय एक युगप्रवर्तक की भूमिका निभाई और समाज को छुआछूत और ऊंच-नीच की जंजीरों से मुक्ति दिलाई।
6 दिसंबर 1956 को डॉ. अंबेडकर ने अपने जीवन का त्याग कर दिया। बाबा साहेब के इस महान और प्रभावशाली जीवन से हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए और समाज के विकास में अपना योगदान देना चाहिए।
“अपने कर्मों से अपना वजूद बनाया,
एक युग को बदलकर
दूसरा युग वह लेकर आया
संविधान रूपी तोहफा देकर,
देशवासियों को सुदृढ़ बनाया।”
धन्यवाद!
आप सभी को यह भाषण कैसा लगा, आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं। इस पोस्ट से संबंधित यदि आपके कुछ सुझाव है तो आप हमें अवश्य बताएं। धन्यवाद!